एक छोर से चढ़ता आता है
रोशनी को लीलता हुआ एक ब्लैक होल,
अंधेरे का नश्तर चीर देता है आसमान का सीना,
और बरस पड़ता है बेनूर स्याह रंग।
अपनी गुफाओं से निकलते हैं आदमख़ोर भेड़िए
और उनकी ख़ौफ़नाक गुर्राहट से
काँप जाती है हवा।
कुछ घुटी हुई सी चीख़ें उठती हैं बीच सड़क पर
और हम चुपके से बन्द करते हैं
अपने-अपने घरों के आख़िरी दरवाज़े।
भिनभिनाती आवाज़ में हमारी मुर्दा चेतना लिखती है
एक मरती सभ्यता की साँसों का शोकगीत।
कौतूहलजन्य प्रश्नवाचक मुद्रा में बुदबुदाते बच्चों को
उँगलियों के इशारे से चुप कराया जाता है,
सिखायी जाती है उन्हें
पहले आँख, फिर कान और आख़िर में
मुह बन्द रखने की कला।
और इस तरह दी जाती है अगली पीढ़ी को
इक्कीसवीं सदी की नागरिकता की तालीम!

प्रांजल राय की कविता 'हमारा समय एक हादसा है'

Recommended Book:

प्रांजल राय
बैंगलोर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत | बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान से बी.टेक. | वागर्थ, कथादेश, पाखी, समावर्तन, कथाक्रम, परिकथा, अक्षरपर्व, जनसंदेश-टाइम्स, अभिनव इमरोज़, अनुनाद एवं सम्प्रेषण आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित