‘Avyakt Abhivyakti’, Hindi Kavita by Rakhi Singh

कुछ प्रेयसियाँ
अपने संकोच और अहम के केंचुल से निकलना नहीं चाहतीं
और ये भी चाहती हैं
कि प्रेयस उस खोल को भेदकर
उनकी आत्मा तक पहुँचे

प्रेम में उन्होंने स्वयं को
व्यवहारकुशल बना लिया है
मौन, मुस्कान या उदासी से
उनकी थाह नहीं लगती
बहुत गहरी होती है
उनकी तटस्थता की खाई

वो अपने शब्द खुले नहीं छोड़तीं
अधूरे छूटने के या बतंगड़ बन जाने की अभ्यस्त हो चुकीं
उनकी बातें,
कई परतों में लिपटी होती हैं

कॉल करूँ क्या –
प्रेयस के निवेदन पर जब प्रेयसी सपाट भाव से कहती है –
नहीं!
‘नहीं’ ओट है
उसका जो उसने कहा है –
पूछकर करोगे?

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