‘Badchalan Auratein’, a poem by Nidhi Agarwal

घूँघट किए स्त्रियों ने अपने लम्बे घूँघट से झाँक हिकारत से घूरा,
जतन से अपना सिर ढके उन ‘असंस्कारी’ औरतों को-
जिनकी आँखें दुनिया को बिना किसी पर्दे के देखने को अभ्यस्त हो चुकी थीं।

वह स्त्रियाँ कर रही थीं कानाफूसी,
उन ‘बेहया’ स्त्रियों के बारे में जिनके सिर पर नहीं थे पल्लू।

अपने आँचल को दाँतों में हतप्रभ दबाते
यह स्त्रियाँ चकित थीं दुपट्टा विहीन उन स्त्रियों की ‘चरित्रहीनता’ पर
जिन्होंने अपनी तरफ़ अभिवादन में बढ़ते पुरुष हाथों से मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया था।

हाथ मिलाती स्त्री घूर रही थी उस ‘निर्लज्ज’ स्त्री की नग्न पीठ को
जो पर पुरुषों के गले लगकर
गर्वदीप्त खिलखिलाती थी।

मुस्कुराती हुई वह स्त्री असहज थी,
लॉबी में पुरुष के चुम्बन में डूबी,
मिनी पहने उस ‘बदचलन’ औरत को
होटल के कमरे की ओर बढ़ता देख।

असंस्कारी औरतों के इस विकास क्रम में
सभी स्त्रियों ने पुरुषों को सदा संस्कारी ही पाया।

यह भी पढ़ें: ‘देवमूर्ति का बोलना अपशकुन नहीं होता’

Recommended Book:

Previous articleमौसम की तसल्ली
Next articleप्रेम जादू नहीं जानता
डॉ. निधि अग्रवाल
डॉ. निधि अग्रवाल पेशे से चिकित्सक हैं। लमही, दोआबा,मुक्तांचल, परिकथा,अभिनव इमरोज आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व आकाशवाणी छतरपुर के आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रमों में उनकी कहानियां व कविताएँ , विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रकाशित व प्रसारित हो रहीं हैं। प्रथम कहानी संग्रह 'फैंटम लिंब' (प्रकाशाधीन) जल्द ही पाठकों की प्रतिक्रिया हेतु उपलब्ध होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here