शहर ख़ाली हो चुके हैं
लोगों से,
जब तक कोई बसता था यहाँ
उदासी ढोता था
ताने खाता था और
लानत ओढ़कर सो जाता था

खिन्न और अप्रसन्न लोग
भड़के और भड़काए हुए लोग
आधे लोग और पूरे लोग
इकट्ठे होकर शहर के
सबसे प्रतिष्ठित चौराहे पर
एक अमरबेल में तब्दील हो गए हैं

कुछ इमारतों पर पीपल के पौधों-से उग आए हैं
पीपल की ज़िद्दी जड़ें
खोहड़ों को सालोसाल जकड़े रहती हैं

कुछ बिल खोदने में लगे हुए थे
काम पूरा होते ही
भूगर्भ में जाकर सो गए हैं

एक विकल शरीर
पारिश्रमिक माँगते-माँगते
अपनी आँखों से बह गया है,
वह सूखकर भाप होने से पहले
नदी से मिलना चाहता है

सरकार शराब की दुकानें खोलती थी
औरतें निर्जला व्रत रखती थीं
मर्द शराब की बोतलों में बंद कर दिए गए
औरतों का ख़ून सूख गया
सूखा ख़ून ढेला बन जाता है
ढेलों ने वक्षों में दूध की जगह घेर ली

शहर के दरवाज़ों पर
और शहर के मुँह पर
ताला लगा है
‘ताला’ जितना किसी के चले जाने का सूचक है
उतना ही किसी के लौट आने का संकेत

विडम्बना यह है कि
ज़्यादा समय तक लटके ताले तोड़ दिए जाते हैं
बचे-खुचे लोग ताले तोड़ने में लगे हैं।

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आदर्श भूषण
आदर्श भूषण दिल्ली यूनिवर्सिटी से गणित से एम. एस. सी. कर रहे हैं। कविताएँ लिखते हैं और हिन्दी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है।