तुम्हारे जन्म के समय
इनके चेहरों की उदासी से शुरू होकर,
तुम्हारे कौमार्य पर
तनती भृकुटियों की रेखाओं से होते हुए
सदा सुहागन रहो के आशीर्वाद तक,
पंक्ति दर पंक्ति
रचा गया है यह चक्रव्यूह।
अब जबकि तुम लड़ते-लड़ते
पहुँच चुकी हो भीतर तक,
तो बस यह याद रखो कि
तुम अभिमन्यु नहीं
अर्जुन हो इस महाभारत की,
और तुम्हें बख़ूबी ज्ञात है
हर चक्रव्यूह का रहस्य।
तुम्हें कर्म पथ का
बोध कराने को ही कही गई है गीता।
स्वधर्म की रक्षा के लिए
तुम कभी भी
खींच सकती हो प्रत्यंचा।