‘Danga’, poems by Manmeet Soni
1
बस, रेल, पेट्रोल पम्प तो
कोई भी फूँक सकता है
तू
ख़ुद को फूँक
मेरे दंगाई भाई
फिर देख
तू पानी-पानी हो जाएगा।
2
हम जब भी
घर से निकलते हैं,
अपने हाथों में पत्थर
और जेबों में बम भरकर ही निकलते हैं
दंगों में
बस इतना होता है-
पत्थर सचमुच के पत्थर बन जाते हैं
और बम सचमुच के बम बन जाते हैं।
3
आग को
बरतने के लिए
पानी जैसे हाथ चाहिए।
4
एक पर्ची में नोट कर ले
कितने पत्थर फेंके
कितनी बसें जलायीं
कितना ख़ून बहाया
और फिर
हिम्मत है तो
उस पर्ची को
तेरे ईश्वर के आगे रख दे।
5
एक शहर जलता है तो
दूसरे शहरों से पानी आना चाहिए
पेट्रोल नहीं।
6
पत्थरों को फूल करना होगा
और आग को करना होगा पानी
आज यह प्यार से हो सकता है
कल शायद यह मजबूरी में करना पड़े।
7
तुम
ईश्वर-अल्लाह करते रहो
जो
कहीं नहीं है
वह तुम्हें रोए जा रहा है।
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