प्रेम दर्शाने के तमाम अनुभावों में से
मैंने चुना था
सूक्ष्म प्रेम-चिह्नों पर स्वयं का चिह्नित हो जाना
अगणित स्पर्शों की इच्छाओं को हराकर
मैंने चुना था
इच्छाओं के मूल में समाधिस्थ हो जाना
मेरी आँखों ने नहीं देखे, स्वप्न तुम्हारे शाश्वत साहचर्य के
मैंने चुना था
तुम्हारे अस्तित्व में घुलकर विलय हो जाना
साथ चलते क़दमों की जोड़ी का मोह त्यागकर
मैंने चुना था
यात्रा के अन्तिम छोर पर दो जोड़ी पैरों का एक हो जाना
तुम्हारे प्रेम को अपनी देह पर सजाने से इतर
मैंने चुना था
तुम्हारी अर्द्धांश हो, प्रेम में समरस हो जाना
थका हुआ प्रेम भले ही सुस्ताना चाहे देह के पर्यंक पर
मैंने चुना था
देह की परिधि से परे आत्माओं का चिर हो जाना।