‘Dhundh’, a poem by Adarsh Bhushan

ये जो धुँध सी छायी है न
बस एक छलावा है,
घेर रखी है इसने सिर्फ़
दृष्टि नहीं,
दृष्टिकोण ही बदल दिया है।
श्वेत पर्द-सा,
है पारदर्शी,
किन्तु तुम्हारी नज़रें जो छन जाती हैं,
ये मार रही हैं
तुम्हारे अंदर के उस जीव को,
जो नज़रअंदाज़ कर देता है
देख कर भी,
सुन कर भी।
इसलिए तुम्हारे अस्तित्व का सत्यापित होना
ज़रूरी है,
जब तक तुम्हारे अधर
चिपके रहेंगे,
तब तक तुम्हारे अस्तित्व पर,
प्रश्न उठते रहेंगे।

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आदर्श भूषण
आदर्श भूषण दिल्ली यूनिवर्सिटी से गणित से एम. एस. सी. कर रहे हैं। कविताएँ लिखते हैं और हिन्दी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है।

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