वक़्त की आँखों पर चढ़ा सदियों की सामंती धुँध
हर बार स्त्रीत्व को परखने के नये पैमाने गढे़
आत्मा पर चढ़े भय के कोहरे में क़ैद
एक ही धुरी पर धूमती रही स्त्री

कोहरे को चीर नये रास्ते बनाने के जतन में
लहूलुहान करती रही सीना
जीवन के चाक पर अनजाने ही पीसती गई सपनों के बिरवे
कुचलती रही उँगलियाँ

एक दिन कहानी का पटाक्षेप होगा
बारिश की बूँदाबाँदी के बाद
आसमान के माथे पर लहकेगा सुनहरा सूरज
धरती के गर्भनाल से क्षितिज के सीने तक
समानता का सतरंगी इन्द्रधनुष चमकेगा
हरियाएगी धरती, टहकेगा बिरवा, फलेगा प्रेम…

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महिमा श्री
रिसर्च स्कॉलर, गेस्ट फैकल्टी- मास कॉम्युनिकेशन , कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन कविता,गज़ल, लधुकथा, समीक्षा, आलेख प्रकाशन- प्रथम कविता संग्रह- अकुलाहटें मेरे मन की, 2015, अंजुमन प्रकाशन, कई सांझा संकलनों में कविता, गज़ल और लधुकथा शामिल युद्धरत आदमी, द कोर , सदानीरा त्रैमासिक, आधुनिक साहित्य, विश्वगाथा, अटूट बंधन, सप्तपर्णी, सुसंभाव्य, किस्सा-कोताह, खुशबु मेरे देश की, अटूट बंधन, नेशनल दुनिया, हिंदुस्तान, निर्झर टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में, बिजुका ब्लॉग, पुरवाई, ओपनबुक्स ऑनलाइन, लधुकथा डॉट कॉम , शब्दव्यंजना आदि में कविताएं प्रकाशित .अहा जिंदगी (साप्ताहिक), आधी आबादी( हिंदी मासिक पत्रिका) में आलेख प्रकाशित .पटना के स्थानीय यू ट्यूब चैनैल TheFullVolume.com के लिए बिहार के गणमान्य साहित्यकारों का साक्षात्कार

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