गुलाब
तू बदरंग हो गया है
बदरूप हो गया है
झुक गया है
तेरा मुँह चुचुक गया है
तू चुक गया है।
ऐसा तुझे देखकर
मेरा मन डरता है
फूल इतना डरावाना होकर मरता है!
ख़ुशनुमा गुलदस्ते में
सजे हुए कमरे में
तू जब
ऋतु-राज राजदूत बन आया था
कितना मन भाया था—
रंग-रूप, रस-गंध, टटका
क्षण-भर को
पंखुरी की परतों में
जैसे हो अमरत्व अटका!
कृत्रिमता देती है कितना बड़ा झटका!
तू आसमान के नीचे सोता
तो ओस से मुँह धोता
हवा के झोंके से झरता
पंखुरी-पंखुरी बिखरता
धरती पर सँवरता
प्रकृति में भी है सुन्दरता!
हरिवंशराय बच्चन की कविता 'मेरे जीवन का सबसे बड़ा काम'