मिलन यामिनी से
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
जब मन से लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
मिलने के उन दो यामों ने
दिखलायी अपनी परछाईं,
वह दिन ही था बस दिन मुझको
वह बेला थी मुझको बेला;
उड़ती छाया-सी वे घड़ियाँ
बीतीं कब की लेकिन तब से,
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
2
तुमने जिन सुमनों से उस दिन
केशों का रूप सजाया था,
उनका सौरभ तुमसे पहले
मुझसे मिलने को आया था,
वह गंध गई गठबंध करा
तुमसे, उन चंचल घड़ियों से,
उस सुख से जो उस दिन मेरे
प्राणों के बीच समाया था;
वह गंध उठा जब करती है
दिल बैठ न जाने जाता क्यों;
गरमी में प्रातःकाल पवन,
प्रिय ठण्डी आहें भरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
3
चितवन जिस ओर गई उसने
मृदु फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुस्कानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी,
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्पों के गुच्छे,
जब तुमने मेरे अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रातःकाल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
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