जब ढह रही हों आस्थाएँ
जब भटक रहे हों रास्ता
तो इस संसार में एक स्त्री पर कीजिए विश्वास
वह बताएगी सबसे छिपाकर रखा गया अनुभव
अपने अँधेरों में से निकालकर देगी वही एक कंदील
कितने निर्वासित, कितने शरणार्थी,
कितने टूटे हुए दुःखों से, कितने गर्वीले
कितने पक्षी, कितने शिकारी
सब करते रहे हैं एक स्त्री की गोद पर भरोसा
जो पराजित हुए उन्हें एक स्त्री के स्पर्श ने ही बना दिया विजेता
जो कहते हैं कि छले गए हम स्त्रियों से
वे छले गए हैं अपनी ही कामनाओं से
अभी सब कुछ गुज़र नहीं गया है
यह जो अमृत है, यह जो अथाह है
यह जो अलभ्य दिखता है
उसे पा सकने के लिए एक स्त्री की उपस्थिति
उसकी हँसी, उसकी गंध
और उसके उफान पर कीजिए विश्वास
वह सबसे नयी कोंपल है
और वही धूल चट्टानों के बीच दबी हुए एक जीवाश्म की परछाईं।

कुमार अम्बुज की कविता 'इस बार'

Book by Kumar Ambuj:

कुमार अम्बुज
कुमार अंबुज (१३ अप्रैल १९५७), जिनका मूल नाम पुरुषोत्‍तम कुमार सक्‍सेना है और जिनका कार्यालयीन रिकॉर्ड में जन्‍म दिनांक 13 अप्रैल 1956 है, हिन्दी के कवि हैं। उनका पहला कविता संग्रह किवाड़ है जिसकी शीर्षक कविता को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिला। 'क्रूरता' नामक इनका दूसरा कविता संग्रह है। उसके बाद 'अनंतिम', 'अतिक्रमण' और फिर 2011 में 'अमीरी रेखा' कविता संग्रह विशेष रूप से चर्चित हुए हैं।