स्मृति की नदी
वह दूर से बहती आती है, गिरती है वेग से
उसी से चलती हैं जीवन की पनचक्कियाँ
वसंत-1
दिन और रात में नुकीलापन नहीं है
मगर कहीं कुछ गड़ता है
वसंत-2
भूलती नहीं उड़तीं सूखी पत्तियाँ
अमर है उनकी उड़ान
वसंत-3
पीले, सूखे पत्तों के नीचे कुचला गया हूँ मैं
इण्टरमीडिएट परीक्षा परिणाम
बच्चे युवा दिखने लगे हैं
वे अज्ञात सफ़र के लिए बांध रहे हैं सामान
प्रार्थना
एक शरणस्थली
सम्भव अपराध के पहले या फिर उसके बाद
राष्ट्रीयता
दीवार पर लगे बल्ब को देखता हूँ मैं
और सोचता हूँ एडीसन की राष्ट्रीयता के बारे में
लोकतंत्र
आख़िर एक आदमी
जनता को कर ही लेता है अपने नियन्त्रण में
बाँसुरी से
वक़्त आए तो बीच में ही बाँसुरी बजाना छोड़कर
उस बाँसुरी से भगाना पड़ सकता है कुत्ते को
कमाई
मैं उस तरह पाना चाहता हूँ तुम्हारा प्रेम
जैसे कभी प्यासे कौए ने कमाया था घड़े में रखा तलहटी का जल
आमन्त्रण
अमावस की तारों भरी रात में निष्कम्प पोखर
अधेड़ावस्था
दो बच्चे धूल में खेलते, गिरते-उठते
मैं उन्हें देखता हूँ, सिर्फ़ देखता हूँ
कविता
वह तुम्हें मरुस्थल या सुरंग के पार ले जाती है
और अक्सर छोड़ देती है किसी अजायबघर में
दुःख
(चेखव के एक सौ बरस बाद)
आदमी, गाय, बैल, घोड़ा, चिड़िया, मेरे आसपास कोई नहीं
इस मोटरसाइकिल से कैसे कहूँ अपना दुःख
विजेता
घर में घुसते ही गिरता हूँ बिस्तरे पर
यह एक दिन को जीत लेने की थकान है
ज़ाहिर सूचना
प्रिय नागरिक! न्याय मुमकिन नहीं
मुआवज़े के लिए आवेदन कर सकते हैं
जरावस्था
जब हमारी गवाही देने की ताक़त कम होने लगती है
बचपन की आवाज़
टीन की चादरों पर बारिश की कर्कश आवाज़
वर्षों बाद यकायक सुनायी देती है संगीत की तरह
विकास
जो एक वर्ग किलोमीटर के दायरे में भी एक सरीखा नहीं है
कवि का बीज
पाँवों, बालों, पूँछों, पक्षियों की बीट और पंखों के साथ
मैं महाद्वीपों को लाँघता हूँ…
कुमार अम्बुज की कविता 'एक स्त्री पर कीजिए विश्वास'