भोर बुलाए सांझ को मिलने
तन अपने एक में सिलने
अब सांझ है आधी, आधी भोर,
मिलन की बेला, मिलन विभोर

धूल का रंग वायु में घुला है
गऊअन का एक झुंड चला है
पग पग पीछे धूल पखारे
गोधूलि बेला, दृश्य मिला है।

संगम का परिणाम रूप ये
अद्भुत बेला है अनूप ये
कण-कण कृष्ण बसे हैं इसमें
गोधूलि बेला, हरि स्वरूप ये।

हिरणाकश्यप का अंतकाल
नरसिंह थे जन्मे बेमिसाल
पेट चीर नाखून रंगे थे
थी गोधूलि बेला, मृत्यु काल।

अब सांझ है आधी, आधी भोर
मिलन की बेला, मिलन विभोर

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नलिनी उज्जैन
हिना का रंग

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