
निर्मल जी का कवि रूप उनके व्यंग्यकार रूप से सर्वथा अलग है। कवि ने अपने कविता जगत को बड़े ही
क़रीने और मितव्ययिता के साथ सजाया है। इनके यहाँ भाषा अपनी अर्थवत्ता के प्रति अतिरिक्त सजग रही है। हर कविता अपने विषय के निर्वाह के साथ अपने सुहृद पाठक के लिए बड़े आयाम का नया दरवाज़ा खोलती नज़र आती है। इसलिए इस संग्रह की छोटी-छोटी कविताएँ अपने में बड़ी गहराई लिए हुए हैं। विसंगतियों से भरे हुए इस त्रासद समय में भी कवि जीवन की सम्भावनाओं को बड़ी उम्मीद के साथ देखता है। जहाँ एक ओर उसके पास हमारे समय के तमाम ज़रूरी सवाल भी हैं और सूक्ष्म सौंदर्य की पहचान का हुनर भी। कवि की 'उड़ान' जैसी कविता उसको एक नए नज़रिए और ऊर्जा से भर देती हैं। - राहुल देव


प्रकृति के बीच से कंकरीट के जंगल तक की यात्रा में कवि ने अपने अनुभवों, अपनी दृष्टि को और अपनी सम्वेदनात्मक अनुभूतियों को इस संग्रह में समेटते हुए ‘ड्रांइगरूम वाली बौद्धिकता’ से हटकर यथार्थवादी चेतना से जुड़ने का प्रयास तो किया ही है, साथ ही अपनी वाग्मिता और अर्थवत्ता को भी विस्तार दिया है। कवि का आग्रह शिल्प विशेष पर न होकर साध्य पर रहा है, जिसके लिए भाषा और बिम्बों के चमत्कार से परहेज़ रखते हुए अपने कथ्य की स्पष्टता और सहजता पर शत-प्रतिशत फ़ोकस इन कविताओं की विशेषता है। इस संग्रह की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सहज-सरल भाषा है, जो कविताओं की सम्प्रेषणीयता में पाठक और कवि के बीच कोई दीवार खड़ी नहीं करती। रमेश जी की कविताएँ ऐसी अभिव्यक्ति हैं जो आपको उद्वेलित करती हैं और जिन्हें पढ़ते हुए कभी आप आनंदित हो सकते हैं तो कभी क्षुब्ध! वास्तव में इन कविताओं का साध्य यथार्थ का तलस्पर्श, सुंदर और प्रेषणीय चित्रण है जो उन्होंने पहाड़ की वादियों से लेकर महानगर तक में निवास करते हुए देखा, समझा और जाना।


"प्रेम हम सबको बेहतर शहरी बनाता है। हम शहर के हर अनजान कोने का सम्मान करने लगते हैं। उन कोनों में ज़िन्दगी भर देते हैं... आप तभी एक शहर को नए सिरे से खोजते हैं जब प्रेम में होते हैं। और प्रेम में होना सिर्फ़ हाथ थामने का बहाना ढूँढना नहीं होता। दो लोगों के उस स्पेस में बहुत कुछ टकराता रहता है। ‘लप्रेक’ उसी कशिश और टकराहट की पैदाइश है।"


‘यह भारतमाता कौन है, जिसकी जय आप देखना चाहते हैं?’ 1936 की एक सार्वजनिक सभा में जवाहरलाल नेहरू ने लोगों से यह सवाल पूछा। फिर उन्होंने कहा—बेशक ये पहाड़ और नदियाँ, जंगल और मैदान सबको बहुत प्यारे हैं, लेकिन जो बात जानना सबसे ज़रूरी है वह यह कि इस विशाल भूमि में फैले भारतवासी सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं। भारतमाता यही करोड़ों-करोड़ जनता है और भारतमाता की जय उसकी भूमि पर रहने वाले इन सब की जय है।’
यह किताब इस सच्ची लोकतांत्रिक भावना और समावेशी दृष्टिकोण को धारण करने वाले शानदार दिमाग़ को हमारे सामने रखती है। यह पुस्तक आज के समय में ख़ासतौर से प्रासंगिक है जब ‘राष्ट्रवाद’ और ‘भारतमाता की जय’ के नारे का इस्तेमाल भारत के विचार को एक आक्रामक चोग़ा पहनाने के लिए किया जा रहा है जिसमें यहाँ रहनेवाले करोड़ों निवासियों और नागरिकों को छोड़ दिया गया है।
‘कौन हैं भारतमाता?’ में नेहरू की क्लासिक किताबों—‘आत्मकथा’, ‘विश्व इतिहास की झलक’ और ‘भारत की खोज’—से लेख और अंश लिये गए हैं। उनके भाषण, निबन्ध और पत्र, उनके कुछ बहुत प्रासंगिक साक्षात्कार भी इसमें हैं। संकलन के दूसरे भाग में नेहरू का मूल्यांकन करते हुए अन्य लेखकों के अलावा महात्मा गांधी, भगत सिंह, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद समेत अनेक महत्त्वपूर्ण हस्तियों के आलेख शामिल हैं। इसकी विरासत आज भी महत्त्वपूर्ण बनी हुई है!


अजनबियों में भी अपनापन तलाश लेने वाली स्त्री के सफ़रनाने का ही दूसरा नाम है स्त्री का पुरुषार्थ। एक ऐसी स्त्री जो सपनों की उड़ान तो भरती है, मगर ज़मीनी सच्चाइयों के साथ भी वह जुड़ी है। इसलिए उसकी अनंत यात्रा लौकिकता से अलौकिकता की ओर बढ़ती दिखायी देती है। कोई दो राय नहीं कि सांत्वना श्रीकांत का काव्य संग्रह एक नई भाव-यात्रा पर ले जाता है, जहाँ से आप स्त्री के मन को ही नहीं, उसके पुरुषार्थ को भी बख़ूबी समझेंगे। - संजय स्वतंत्र

चचेरे और मौसेरे भाई—राज और उद्धव। सगे लेकिन राजनीतिक सोच में बिल्कुल अलग। एक बाल ठाकरे की चारित्रिक विशेषताओं को फलीभूत करने वाला, उनकी आक्रामकता को पोसनेवाला, दूसरा कुछ अन्तर्मुखी जिसकी रणनीतियाँ सड़क के बजाय काग़ज़ पर ज़्यादा अच्छी उभरती हैं। शिवसेना की राजनीति को आगे बढ़ाने के दोनों के ढंग अलग थे। बाल ठाकरे की ही तरह कार्टूनिस्ट के रूप में कैरियर की शुरुआत करनेवाले राज ने पार्टी के विस्तार के लिए चाचा की मुखर शैली अपनायी। दूसरी तरफ़ उद्धव अपने पिता की छत्रछाया में आगे बढ़ते रहे। राज ठाकरे ने अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया, वहीं उद्धव महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी व्यावहारिक सूझ-बूझ के चलते आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं। यह पुस्तक इन दोनों भाइयों के राजनीतिक उतार-चढ़ाव का विश्लेषण है। पहचान की महाराष्ट्रीय राजनीति और शिवसेना तथा उससे बनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उद्भव की जटिल सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण करते हुए इस पुस्तक में उद्धव सरकार के गद्दीनशीन होने के पूरे घटनाक्रम और उसके अब तक के, एक साल के शासनकाल की चुनौतियों और उपलब्धियों का पूरा ब्यौरा भी दिया गया है। दो ठाकरे बंधुओं—राज और उद्धव के वैचारिक राजनीतिक टकराव और अलगाव की बेहद दिलचस्प कहानी। महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और उठापटक का प्रामाणिक चित्रण। महाराष्ट्र की राजनीति का दिलचस्प ऐतिहासिक ब्योरा।
