जिसके पास चली गई मेरी ज़मीन
उसी के पास अब मेरी
बारिश भी चली गई

अब जो घिरती हैं काली घटाएँ
उसी के लिए घिरती हैं
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए
उसी के लिए उठती है
धरती के सीने से सोंधी सुगंध

अब नहीं मेरे लिए
हल नहीं बैल नहीं
खेतों की गैल नहीं
एक हरी बूँद नहीं
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं,
कजरी मल्हाहर नहीं मेरे लिए

जिसकी नहीं कोई ज़मीन
उसका नहीं कोई आसमान।

नरेश सक्सेना की कविता 'आधा चाँद माँगता है पूरी रात'

Book by Naresh Saxena:

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नरेश सक्सेना
जन्म : 16 जनवरी 1939, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) कविता संग्रह : समुद्र पर हो रही है बारिश, सुनो चारुशीला नाटक : आदमी का आ पटकथा लेखन : हर क्षण विदा है, दसवीं दौड़, जौनसार बावर, रसखान, एक हती मनू (बुंदेली) फिल्म निर्देशन : संबंध, जल से ज्योति, समाधान, नन्हें कदम (सभी लघु फिल्में) सम्मान: पहल सम्मान, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1992), हिंदी साहित्य सम्मेलन का सम्मान, शमशेर सम्मान

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