किताब ‘आत्मा की आँखें’ से

कविता: डी एच लॉरेंस
अनुवाद: रामधारी सिंह दिनकर

ईश्वर वह प्रेरणा है,
जिसे अब तक शरीर नहीं मिला है।
टहनी के भीतर अकुलाता हुआ फूल,
जो वृन्त पर अब तक नहीं खिला है।

लेकिन, रचना का दर्द छटपटाता है,
ईश्वर बराबर अवतार लेने को अकुलाता है।

इसीलिए, जब तब हम
ईश्वरीय विभूति का प्रसार देखते हैं।
आदमी के भीतर
छोटा-मोटा अवतार देखते हैं।

जब भी कोई ‘हेलेन’,
शकुन्तला या रुपमती आती है,
अपने रुप और माधुर्य में…
ईश्वरीय विभूती की झलक दिखा जाती है।

और जो भी पुरुष
निष्पाप है, निष्कलंक है, निडर है,
उसे प्रणाम करो,
क्योंकि वह छोटा-मोटा ईश्वर है।

ईश्वर उड़नेवाली मछली है।
झरनों में हहराता दूध के समान सफ़ेद जल है।
ईश्वर देवदार का पेड़ है।
ईश्वर गुलाब है, ईश्वर कमल है।

मस्ती में गाते हुए मर्द,
धूप में बैठ बालों में कंघी करती हुई नारियाँ,
तितलियों के पीछे दौड़ते हुए बच्चे,
फुलवारियों में फूल चुनती हुई सुकुमारियाँ,
ये सब के सब ईश्वर हैं।
क्योंकि जैसे ईसा और राम आए थे,
ये भी उसी प्रकार आए हैं।
और ईश्वर की कुछ थोड़ी विभूती
अपने साथ लाए हैं।

ये हैं ईश्वर—
जिनके भीतर कोई अलौकिक प्रकाश जलता है।
लेकिन, वह शक्ति कौन है,
जिसका पता नहीं चलता है?

डी. एच. लॉरेंस की कविता 'उखड़े हुए लोग'

Link to buy ‘Aatma Ki Aankhein’:

Previous articleआम
Next articleउसने मुझे पीला रंग सिखाया

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here