गर्दन उठाकर ईश्वर को आकाश में खोजने वालों
तुमने ही धरती को रक्तपात दिया है
तुमने ही हमें मज़हबों में बाँट दिया है
तुम ही करते आए हो अपराध
और दोषी ठहराए गए हैं निरपराध

गर्दन उठाकर ईश्वर को आकाश में खोजने वालों
निमिष भर के लिए गर्दन झुकाकर ज़मीं पर देखो
आकाश को खेल का मैदान का बनाकर
बच्चे खेल रहे हैं अनेकों खेल
स्त्रियाँ कर रही हैं अपने बच्चों से असीमित प्रेम

बम धमाके करने वालों
बिल्ली के चलने की आवाज़ सुनो
लाठियाँ बरसाने वालों
छूकर देखो नवजात शिशु
दुर्वचन कहने वालों
बुलबुल की आवाज़ सुनों
कोयल का गान सुनो
नदियों का संगीत सुनो
तमाम देश के राजनेताओं
किसानों से मिलो
उनके खेत चलो
फ़सलों का हाल सुनो
नफ़रत करने वालोें
तथागत से मिलो
अगर इनमें से किसी में भी तुम्हें ईश्वर दिखायी नहीं पड़ता है
तो
तुम्हें इस पृथ्वी से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।

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सुधीर डोंगरे
कविताएं पढ़कर सुकून मिलता है सीखने की प्रक्रिया में शामिल हूं लिखने की प्रक्रिया में शामिल हूं

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