Tag: religion

Yashasvi Pathak

यशस्वी पाठक की कविताएँ

कविताएँ: यशस्वी पाठक एक कवि और लेखकों की शामें दोस्तों के साथ या सड़कों पर गश्त लगाते गुज़रती हैं जहाँ गर्भ धारण करते हैं उनके मस्तिष्क जिससे जन्म...
Rahul Sankrityayan

तुम्हारे धर्म की क्षय

वैसे तो धर्मों में आपस में मतभेद है। एक पूरब मुँह करके पूजा करने का विधान करता है, तो दूसरा पश्चिम की ओर। एक...
Ganesh Shankar Vidyarthi

धर्म की आड़

इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्‍पात किये जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर और ज़िद की जाती है,...
God, Abstract Human

तारबंदी

जालियों के छेद इतने बड़े तो हों ही कि एक ओर की ज़मीन में उगी घास का दूसरा सिरा छेद से पार होकर साँस ले सके दूजी हवा में तारों की इतनी...
God, Abstract Human

विस्थापित ईश्वर

जो घटना समझ नहीं आयी, उसे हमने ईश्वर माना और उनसे ईश्वर रचे जो समझ के अधीन हुईं। उसने वर्षा, हवा, पेड़ों में शक्ल पायी, और सीधे सम्बन्ध...

विषय

बन्द गिरजों, वीरान मस्जिदों और सुनसान शिवालों के बीच उनकी बहस का विषय है धर्म। बीमारी और बेबसी के दौर में मुँह से दूर होते निवालों के बीच उनकी बहस का...
Jawaharlal Nehru and Indira Gandhi

मज़हब की शुरुआत और काम का बँटवारा

अनुवाद: प्रेमचंद पिछले ख़त में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने ज़माने में आदमी हर एक चीज़ से डरता था और ख़याल करता था कि...
Nishant

कविता की परीक्षा

'Kavita Ki Pareeksha', a poem by Nishant Upadhyay ईश्वर की परिभाषा क्या है? हर धर्म के अपने ईश्वर होते हैं। धर्म की परिभाषा क्या है? धर्म ईश्वर से...
God, Abstract Human

ईश्वर की खोज

गर्दन उठाकर ईश्वर को आकाश में खोजने वालों तुमने ही धरती को रक्तपात दिया है तुमने ही हमें मज़हबों में बाँट दिया है तुम ही करते आए हो अपराध और...
Common Man

अम्बिकेश कुमार की कविताएँ

Poems: Ambikesh Kumar विकल्प उसने खाना माँगा उसे थमा दिया गया मानवविकास सूचकाँक उसने छत माँगी हज़ारों चुप्पियों के बाद उसे दिया गया एक पूरा लम्बा भाषण उसने वस्त्र माँगा मेहनताना उसे...
Naveen Sagar

ऐसा सोचना ठीक नहीं

शेर-चीता नहीं, मनुष्‍य एक हिंसक प्राणी है। हिंसा का बहाना चाहिए अहिंसा को ईश्‍वर का बहाना, सबसे ज़्यादा ख़ून बहाने वाला है सबसे ज़्यादा पवित्र बहाना। इसे नकारने का मानुष बहुत कम...
Women selling flowers outside a temple

कब्ज़ा

'Kabza', a poem by Amandeep Gujral दृश्य 1 एक निर्जन-सा चौराहा बड़ा सा पेड़ साँय-साँय करती हवा इक्का-दुक्का गाड़ियाँ मुट्ठी भर लोग दृश्य 2 एक छोटा-सा चौकोर पत्थर लाल-काली रेखाएँ थोड़ी-सी अगरबत्तियाँ और एक...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)