किसको देखा है, ये हुआ क्या है
दिल धड़कता है, माजरा क्या है

इक मोहब्बत थी, मिट चुकी या रब
तेरी दुनिया में अब धरा क्या है

दिल में लेता है चुटकियाँ कोई
हाय! इस दर्द की दवा क्या है

हूरें नेकों में बट चुकी होंगी
बाग़-ए-रिज़वाँ में अब रखा क्या है

उस के अहद-ए-शबाब में जीना
जीने वालो तुम्हें हुआ क्या है

अब दवा कैसी है, दुआ का वक़्त
तेरे बीमार में रहा क्या है

याद आता है लखनऊ ‘अख़्तर’
ख़ुल्द हो आएँ तो बुरा क्या है!

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अख़्तर शीरानी
(4 मई, 1905 - 9 सितम्बर, 1948) ‘अख्तर' शीरानी उर्दू का सबसे पहला शायर है जिसने प्रेयसी को प्रेयसी के रूप में देखा अर्थात् उसके लिये स्त्रीलिङ्ग का प्रयोग किया। इतना ही नहीं, उसने बड़े साहस के साथ बार-बार उसका नाम भी लिया। रूढ़ियों के प्रति इस विद्रोह द्वारा न केवल उर्दू शायरों के दिलों की झिझक दूर हुई और उर्दू शायरी के लिये नई राहें खुलीं, उर्दू शायरी को एक नई शैली और नया कोण भी मिला और उर्दू की रोती-बिसूरती शायरी में ताजगी और रंगीनी आई।

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