‘Main Doshi Hoon’, a poem by Supriya Mishra

हाथ में लिए अख़बार को दूर छोड़
समंदर के किनारे बैठ
अपनी उँगलियों के पोरों से जब
बम्बई की भीगी रेत पर
तुम्हारा नाम गोदती हूँ,
तो मन
रेत की तह में क़ैद
पानी की बूँद की तरह
आकुल हो उठता है।
एक-एक अक्षर को
सलीक़े से पिरोते हुए-
जैसे कोई माँ
अपनी बेटी के बाल गूँथती है,
मात्राओं का ध्यान रखते हुए-
जैसे कोई बाप
अपने बच्चे की
चुपके से जेब टटोलता है
मैं तुम्हारा नाम
अपने नाम के साथ सजाती हूँ,
और उसे निहारती हूँ
जैसे कोई बच्चा
घर में हुए एक
नवजात शिशु को।
फिर कुछ सोचकर इन नामों को
अपने ही हाथों से मिटा देती हूँ
जब सुनायी देती है
क़रीब आते क़दमों की आवाज़,
जब महसूस होता है
हमारी ओर बढ़ती लहरों का आगाज़…
मैं वापस जाकर
अख़बार में आयी ख़बर की हेडलाइन
फिर से पढ़ती हूँ-
“भूख से रो रहा था आठ महीने का बच्चा,
दूध नहीं ख़रीद पायी माँ तो दबा दिया गला।”

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सुप्रिया मिश्रा
हिन्दी में कविताएं लिखती हूँ। दिल से एक कलाकार हूँ, साहित्य और कला के क्षेत्र में नया सीखने और जानने की जागरूकता बनाए हुए हूँ।

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