मैंने उन लेखकों को पढ़ना चाहा
जो उन देशों में रहते थे जिनकी दिशा का ज्ञान मुझे नहीं है
उन तमाम लेखकों के बारे में
मैं कितना जानता हूँ
मैं तो ठीक-ठीक कई नामों का उच्चारण नहीं कर सका
आधी उम्र बीत गयी

पढ़ना, घर की दीवारों को पढ़ना
पिता ने कान में कहा था
हाथ पकड़कर माँ ने कहा था
उन तमाम चीज़ों को पढ़ने के लिए जो पिता नहीं कह सके

मैं चाहकर भी नहीं पढ़ सका उन तमाम लेखकों को
जिनका नाम लेते हुए तुम्हारा चेहरा नितांत पराया-सा दिखता है
दरवाज़े पर खड़े पेड़ को पढ़ना
आँगन में आती चिड़ियों को पढ़ना
इतना ही कहाँ पढ़ सका

न पढ़ने की विफलता महसूस की है इन दिनों
घर में काम करने वाली उस औरत को कहाँ पढ़ सका
कुल नौ सौ के भाड़े पर रहती थी
पाँच घरों में काम करती थी
पटना छोड़कर गया चली गयी
मेरी पढ़ने की प्राथमिकता में जो दोष है
मुझे कौन माफ़ करेगा इस देश में!

रोहित ठाकुर की कविता 'भाषा के पहाड़ के उस पार'

Recommended Book:

Previous articleसमता के लिए
Next articleसुनो दारोग़ा
रोहित ठाकुर
जन्म तिथि - 06/12/1978; शैक्षणिक योग्यता - परा-स्नातक राजनीति विज्ञान; निवास: पटना, बिहार | विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं बया, हंस, वागर्थ, पूर्वग्रह ,दोआबा , तद्भव, कथादेश, आजकल, मधुमती आदि में कविताएँ प्रकाशित | विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों - हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में कविताएँ प्रकाशित | 50 से अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित | कविताओं का मराठी और पंजाबी भाषा में अनुवाद प्रकाशित।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here