मैंने उन लेखकों को पढ़ना चाहा
जो उन देशों में रहते थे जिनकी दिशा का ज्ञान मुझे नहीं है
उन तमाम लेखकों के बारे में
मैं कितना जानता हूँ
मैं तो ठीक-ठीक कई नामों का उच्चारण नहीं कर सका
आधी उम्र बीत गयी
पढ़ना, घर की दीवारों को पढ़ना
पिता ने कान में कहा था
हाथ पकड़कर माँ ने कहा था
उन तमाम चीज़ों को पढ़ने के लिए जो पिता नहीं कह सके
मैं चाहकर भी नहीं पढ़ सका उन तमाम लेखकों को
जिनका नाम लेते हुए तुम्हारा चेहरा नितांत पराया-सा दिखता है
दरवाज़े पर खड़े पेड़ को पढ़ना
आँगन में आती चिड़ियों को पढ़ना
इतना ही कहाँ पढ़ सका
न पढ़ने की विफलता महसूस की है इन दिनों
घर में काम करने वाली उस औरत को कहाँ पढ़ सका
कुल नौ सौ के भाड़े पर रहती थी
पाँच घरों में काम करती थी
पटना छोड़कर गया चली गयी
मेरी पढ़ने की प्राथमिकता में जो दोष है
मुझे कौन माफ़ करेगा इस देश में!
रोहित ठाकुर की कविता 'भाषा के पहाड़ के उस पार'