विवरण: प्रेमचन्द आज भी साहित्य में महत्त्वपूर्ण हैं और नयी पीढ़ियाँ भी उनके पठन-पाठन तथा अध्ययन-अनुसन्धान में रुचि लेती हैं। जब भी साहित्य-संसार तथा विश्वविद्यालयों एवं विद्वानों के बीच आधुनिक कथा-साहित्य की चर्चा होती है तो प्रेमचन्द से ही बात शुरू होती है और ख़त्म होती है कि कथा-साहित्य में सम्राट बनने एवं दिग्विजय करने वाला कोई दूसरा कथाकार नहीं है। प्रेमचन्द के प्रति इसी आकर्षण एवं जिज्ञासा के कारण विभिन्न विश्वविद्यालयों, अकादमियों तथा अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में उनके साहित्य पर विचार-विमर्श होता रहता है और प्रेमचन्द के समाज को आज के समाज के सन्दर्भ में समझने/जानने के प्रयास होते रहते हैं।

इसी प्रकार मंगलूरु विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग तथा मंगलूरु प्रादेशिक हिन्दी प्रचार समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में ‘प्रेमचन्द : एक पुनर्मूल्यांकन’ विषय पर 25-26 नवम्बर, 2016 को एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। मुझे इस संगोष्ठी में आमन्त्रित किया गया था परन्तु अन्यत्र व्यस्तता के कारण मैं न जा सका और मेरे प्रस्ताव पर डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल को आमन्त्रित किया गया और उन्होंने बीज भाषण दिया।

इसका उद्घाटन कुलसचिव डॉ. के.एस. लोकेश ने किया और कार्यक्रम में डॉ. ललिताम्बा, डॉ. मुक्ता, डॉ. उदय कुमार तथा स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग की संयोजिका डॉ. नागरत्ना आदि के साथ अनेक अध्यापक एवं छात्र उपस्थित थे। अब संगोष्ठी का विवरण पुस्तक रूप में छप रहा है। इससे प्रेमचन्द-साहित्य के मूल्यांकन को नयी दिशा मिलेगी और नयी पीढ़ी इस ज्ञान-यज्ञ से लाभान्वित हो सकेगी। – भूमिका से

  • Format: Hardcover
  • Publisher: Vani Prakashan (2018)
  • ISBN-10: 9388434293
  • ISBN-13: 978-9388434294
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पोषम पा
सहज हिन्दी, नहीं महज़ हिन्दी...

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