विवरण:

दीप्ति जी की शाइरी में जिस औरत के दर्शन होते हैं वो उस औरत से मुख़्तलिफ़ है जिसको सदियों से समाज में दिखाया जा रहा है। इसमें नये भारत की नयी औरत नज़र आती है, ये वही औरत है जो आज का ज़िन्दा वुजूद है।

-निदा फ़ाज़ली

यह काव्य-संग्रह दो खण्डों में विभक्त है। एक कविता-खंड और दूसरा ग़ज़ल -खंड। अपनी ग़ज़लों के केन्द्र में भी दीप्ति ने ‘अस्तित्व’ को ही उच्च स्थान दिया है। भले ही यहाँ विधागत परिवर्तन हो गया हो किन्तु दीप्ति की अस्तित्ववादी सोच में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। ग़ज़ल क्योंकि एक ही बहर में रदीफ़ और काफ़ियों के समुचित प्रयोग के साथ अनेक अश्आर के समूह का नाम है इसलिए अपनी संरचना पद्धति में वह अन्य विधाओं से विशेष है। ग़ज़ल विधा अन्य विधाओं के मुकाबले स्वयं में एक विशिष्ट विधा तो है ही, किन्तु दीप्ति की ग़ज़लें पढ़ कर उनकी विशिष्टता का एक नया ही रंग देखने को मिलता है। यह रंग सबसे अलग इस मायने में है कि उनमें उस अस्तित्व का निहितार्थ व्याप्त है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के भीतर की अपनी अलग पहचान के रूप में समाहित और सुरक्षित है।

-डॉ. कुँवर बेचैन

  • Format: Paperback
  • Language: Hindi
  • ISBN-10: 9387648060
  • ISBN-13: 978-9387648067
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