विवरण: नयी उत्तर-आधुनिक स्थितियाँ और नये नजरिए, नये इतिहास की माँग करती हैं।

‘तीसरी परम्परा की खोज’ इसी माँग का परिणाम है। यह खोज हिन्दी साहित्य के उपलब्ध ‘इतिहासों’ को ‘डिसरप्ट’ करती है। यह ‘पहली’ और तथाकथित ‘दूसरी परम्परा’ की पोल खोलती है।

यह किताब इस तरह न बनी होती, अगर अरुण माहेश्वरी ने न कहा होता कि एक ‘तीसरी परम्परा’ भी हो जाये!

– सुधीश पचौरी 

  • Format: Hardcover
  • Publisher: Vani Prakashan (2019)
  • ASIN: B07NBPCCMC
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पोषम पा
सहज हिन्दी, नहीं महज़ हिन्दी...

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