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फँसी हुई लड़कियाँ!
उसके गाँव जवार और मुहल्ले का
ये आसाध्य और बहुछूत शब्द था,
कुछ लड़कियों के तथाकथित प्रेमियों ने अपने जैसे धूर्त दोस्तों में बैठकर बेहयाई से प्रेयसी का नाम लेते हुए कहा- मुझसे फँसी हुई है!
उसे नफ़रत थी इस शब्द से
उसने जहाँ भी सुना कि वो लड़की
किसी से फँसी हुई है
उस लड़की के लिए घृणा से उसका मन भर गया
फँसी हुई लड़कियों को देखकर लगा कि कोई ग़लीज़ चीज़ देख ली

फिर एक दिन उसे अप्रत्याशित प्रेम हुआ
अब उसके सर्वांग से फूटती थी एक आदिम महक
और आँखें अड़हुल के फूलों की तरह दहकने लगीं
प्रेयस ने उसे बताया प्रेम आत्मा का पवित्रतम रूप है
प्रेयसी को प्रार्थना की सुरीली धुन कहा
वो मगन रही कि वो प्रेयसी है
गर्व रहा कि वो फँसी हुई लड़की नहीं है
और उन फँसी हुई लड़कियों से और घृणा की

फिर एक दिन उसने सुना, कोई कह रहा था
उसके प्रेमी का नाम लेकर कि
वो तो फ़लाँ व्यक्ति से फँसी हुई है
अचानक ख़ुद के लिए ये शब्द सुनकर
घिन, अपमान, दुःख और क्रोध जैसी कितनी सम्वेदनाओं से काँप गयी वो
लगा कि क़स्बे के सबसे गन्दे नाले में ग़लती से आ गिरी
फिर थोड़ी देर सोचकर उसने हँसकर कहा-
इतनी भी ख़राब नहीं होतीं फँसी हुई लड़कियाँ!
प्रेम के अभिजात्य वैभव का सौभाग्य
और समाहारक हैं यही फँसी हुई लड़कियाँ!

रूपम मिश्रा की कविता 'पिता के घर में मैं'

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