कविता संग्रह ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ से
ख़ाली हाथ
समुद्र के किनारे
रेत पर लिखता हूँ
कविता…
लहरें आती हैं
और बहाकर ले जाती हैं
मेरे शब्द…
लौटता हूँ घर
ख़ाली हाथ
रोज़ बरोज़…
रोज़ हँसते हैं
मछुआरे मुझ पर!
कविता ने
कविता ने
दूर किया मुझे
बहुत सी ग़ैरज़रूरी चीज़ों से
बहुत से ग़ैरज़रूरी दृश्यों से।
जगाए रखा मुझे
कविता ने
रात-रात भर
जुगनू दिखाए
झींगुरों का संगीत सुनाया
अन्धेरे का डर दूर भगाया
और सपनों की कथा सुनायी।
कविता ने रोका मुझे
घटिया लतीफ़ों पर हँसने से
रोका मुझे
दंगाइयों की भीड़ में
शामिल होने से
कविता ने बरक़रार रखी
मेरी आँखों की नमी।
कविता ने
मेरा धर्मान्तरण किया
और भीतर के मनुष्य को
बचाये रखा।
यह भी पढ़ें: मणि मोहन के कविता संग्रह ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ से अन्य कविताएँ
Books by Mani Mohan: