1

सवाल प्रेम है या नहीं
ये कभी था ही नहीं,
फूल कभी पूछकर खिलते हैं क्या?
बस प्रेम को बरतना नहीं आया

दो स्वंतत्रचेता प्रेमी
प्रेम को अपने अनुकूल बना ना सके तो
प्रेम का दोष थोड़े ही है।

प्रेम अपनी जगह रहेगा।

2

प्रेम कोई पाखी नहीं
आज यहाँ तो कल वहाँ

वसंत उदास है तुम्हारी उदासी से
पर तुम जहाँ भी रहो
ख़ुश रहना।

3

तरलता प्रेम का गहना है।

बहना होता है प्रेम की नदी में
बहतें है फूल जैसे गंगा में

प्रेम मनुष्य को निखारता है,
बहकाता नहीं।

प्रेमी मित्र भी है न
वो चिह्नित करता चलता है खड्डों को
साथ चलते हुए…

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महिमा श्री
रिसर्च स्कॉलर, गेस्ट फैकल्टी- मास कॉम्युनिकेशन , कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन कविता,गज़ल, लधुकथा, समीक्षा, आलेख प्रकाशन- प्रथम कविता संग्रह- अकुलाहटें मेरे मन की, 2015, अंजुमन प्रकाशन, कई सांझा संकलनों में कविता, गज़ल और लधुकथा शामिल युद्धरत आदमी, द कोर , सदानीरा त्रैमासिक, आधुनिक साहित्य, विश्वगाथा, अटूट बंधन, सप्तपर्णी, सुसंभाव्य, किस्सा-कोताह, खुशबु मेरे देश की, अटूट बंधन, नेशनल दुनिया, हिंदुस्तान, निर्झर टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में, बिजुका ब्लॉग, पुरवाई, ओपनबुक्स ऑनलाइन, लधुकथा डॉट कॉम , शब्दव्यंजना आदि में कविताएं प्रकाशित .अहा जिंदगी (साप्ताहिक), आधी आबादी( हिंदी मासिक पत्रिका) में आलेख प्रकाशित .पटना के स्थानीय यू ट्यूब चैनैल TheFullVolume.com के लिए बिहार के गणमान्य साहित्यकारों का साक्षात्कार

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