1
सवाल प्रेम है या नहीं
ये कभी था ही नहीं,
फूल कभी पूछकर खिलते हैं क्या?
बस प्रेम को बरतना नहीं आया
दो स्वंतत्रचेता प्रेमी
प्रेम को अपने अनुकूल बना ना सके तो
प्रेम का दोष थोड़े ही है।
प्रेम अपनी जगह रहेगा।
2
प्रेम कोई पाखी नहीं
आज यहाँ तो कल वहाँ
वसंत उदास है तुम्हारी उदासी से
पर तुम जहाँ भी रहो
ख़ुश रहना।
3
तरलता प्रेम का गहना है।
बहना होता है प्रेम की नदी में
बहतें है फूल जैसे गंगा में
प्रेम मनुष्य को निखारता है,
बहकाता नहीं।
प्रेमी मित्र भी है न
वो चिह्नित करता चलता है खड्डों को
साथ चलते हुए…