“हम कौनो ओर के नइखी, मम्मी हमार बियाह अपने रिश्तेदारी में खोजS ताड़ी आ पापा अपने। उहे हाल बा पुतवो मीठ भतरो मीठ, किरिया केकर खाईं”

“केहू के मत खा ए करेजा! हमार खा लS, झुठहूँ खईबू तS कउनो बात नइखे, तोहरी खातिर तS परानो दे देब।”

“परान के कौनो चटनी बनी का? सोच बदलS तनी।”

“अच्छे ठीक बा, चलS सन्हे रहल जाइ, दुखम-सुखम सन्हे सहल जाइ, अब बोलS।”

“ठीक तS बा अब इहे होइ।”

दुनू जने चल पड़ल लोग प्रेम डगरिया…

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नम्रता श्रीवास्तव
अध्यापिका, एक कहानी संग्रह-'ज़िन्दगी- वाटर कलर से हेयर कलर तक' तथा एक कविता संग्रह 'कविता!तुम, मैं और........... प्रकाशित।

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