हथेलियाँ मिलीं,
हथेलियाँ मिलने लगीं,
शहर हथेलियों में घूमने लगा।
फिर एक दिन उंगलियाँ मिलीं,
और उंगलियाँ भी मिलने लगीं,
अब शहर का वो हिस्सा उंगलियों ने घूमा
जो हथेलियों की सरहद से बाहर था।
अबकी हथेलियाँ और उंगलियाँ दोनों मिलीं,
दोनों रोज़ साथ-साथ मिलने लगे, अब सारी धरती इनमें घूमती है।
फिर बहुत देर से मुठ्ठियाँ मिलीं,
साथ घूमीं, सारी रात गले लगी रहीं
और इनमें घूमता रहा समूचा अकेलापन,
जब होश आया तो देखा- दोनों की आँखों में गढ़ा पानी था पलकों की कोरों पर जमा हुआ,
तब अंगूठों ने मुट्ठियों के कंधे पर सर रखा
एक दूजे को डूब के देखा, आँसू पोछे, सहलाया और थपकियाँ दीं।
मुट्ठियों की इजाज़त से, नाखूनों ने एक दूजे की हथेली को कस के चूमा और फिर दोनों साथ सो गये,
इस तरह से हथेलियों की ये पहली रात थी।
सुबह हुई तो मुठ्ठियाँ खुल चुकी थीं, पर छोटी उंगली, छोटी उंगली पर सो रही थी…
जैसे हम सोते हैं नवजात शिशु की तरह।
(ये दुनिया का सबसे कोमल दृश्य था)
(18 ! 02 ! 2019)