दो लड़कियों का प्रेम
धरने का पर्यायवाची था
आलिंगन में चिपकी उनकी देहों के मध्य
तैनात था
पृथ्वी के एक गोलार्द्ध का अंधकार
वे जहाँ गईं
उनका प्रेम रिसा
समाज की भावनाएँ आहत हुईं
उनका अस्तित्व एक संग्राम था
उनके चुम्बन
संग्राम में उठे नारे
उनके प्रेम में प्रकृति का वास था
पहाड़ की चोटियों ने चोटियों में उनकी
गूँथे बर्फ़ीले रेशों के गजरे
उनके आपसी स्पर्श की आँच पर
गर्म हुए मरुस्थल
समन्दर पर उड़ते पंछियों ने
किया उनकी स्वप्न-कथा में
संगीत-निर्देशन
उनके प्रेम में प्रकृति का वास था
हालाँकि हवाला प्रकृति का ही देकर मारा गया उन्हें
उनकी हत्या पर निकली चीख़ें
क्रान्तियों का आह्वान करते नगाड़े हैं
काश कविताएँ होना चाहतीं
दो प्रेमियों की हत्या पर
बिलखते पहाड़ के आँसुओं का साक्षात्कार
काश!
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