“मंद-मंद क्यों मुस्कुरा रहे हो, मनोहर?”, विश्रान्ति के क्षणों में राधा ने कृष्ण से प्रश्न किया।

“राधा-कृष्ण का विवाह क्यों नहीं हुआ? लोगों के इस जटिल प्रश्न के साधारण से उत्तर पर हँस रहा हूँ राधे!”

राधा ने कृष्ण से स्पष्टता की आशा की।

कृष्ण- “राधे! साधारण मनुष्य ‘इच्छा, वासना, आशा, तृष्णा’ का दास होता है। पर हम तो स्वयं ब्रह्म हैं, इन लोकरीतियों के स्वामी। एकांगी ब्रह्म के लिए इन लोकरीतियों का भला क्या अभिप्राय?” कृष्ण आनंदविभोर थे।

“सच है मनोहर? सम्पूर्णता को सम्पूर्णता की कोई आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह अन्य अपूर्ण रिक्तियों को भरने का कार्य करती है।” यह कहते हुए राधा कृष्ण में पुनः विलीन हो चली।

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नम्रता श्रीवास्तव
अध्यापिका, एक कहानी संग्रह-'ज़िन्दगी- वाटर कलर से हेयर कलर तक' तथा एक कविता संग्रह 'कविता!तुम, मैं और........... प्रकाशित।

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