प्रेम में पड़ी लड़की
नहीं देखना चाहती जीवन में
किसी तरह की विषमता।
ज़िन्दगी को जीना चाहती है
कविताओं के समीकरण से।
भागती है दूर गणित से,
नहीं भाता उसे
घटाव, भाग करना प्रेम में।
दो समानान्तर रेखाओं के बीच
चलती दो ज़िन्दगियों को भी
समझ लेती है एक!
और कर बैठती है उम्मीद
एक बिन्दु पर, मिलने की।
चार हथेलियों की रेखाओं को
गिनती है एक
और करने लगती है
अपने प्रेम को गुणित – एक से।
ज्यामितिय आकारों में भी
ढूँढ लेती है प्रेम के आकार
और घूमती रहती है
वृत्त की परिधि पर,
कुछ सपने संजोकर।
पर घूमती परिस्थितियों की परिधि पर
यथार्थ का जीवन प्रश्न देख
गणित से भागने वाली लड़की
सारे असमानताओं वाले
समीकरण सुलझा लेती है,
आड़े-तिरछे रिश्तों की रेखाओं को
जोड़, घटाव, गुणा, भाग से
हल कर जीवन का
शेषफल निकाल लेती है…

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अनुपमा झा
कविताएं नहीं लिखती ।अंतस के भावों, कल्पनाओं को बस शब्दों में पिरोने की कोशिश मात्र करती हूँ।

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