कल रात देखा एक सपना
और सपने में एक चेहरा
बढ़ता हुआ अपनी तरफ़
चमकदार रौशनी लिए हुए
एक अजीब सी कशमकश
के साथ छोड़ गया मुझे वो
बीच सपने में आधी रात में अकेला
बिना परवाह किए, और
मैं, कि जी भर देख भी नहीं
पाया उसको
कितनी ही रातें गुज़र गयीं
पर अब बहुत याद करने पर भी
याद नहीं आता है वो एक चेहरा
सो अब दिन रात करता हूँ
कोशिश उसे भूलने की
मेरी लाचारी भी मुझे इस मोड़ पर
छोड़ चुकी है कि
मैं भूलना चाहता हूँ एक ऐसी चीज़
जो मुझे याद नहीं है…