Tag: Hindi poem
कैसे रहे सभ्य तुम इतने दिनों
राहुल द्रविड़। एक ऐसा खिलाड़ी जिसने खेल को एक जंग समझा और फिर भी जंग में सब जायज़ होने को नकार दिया। एक ऐसा...
इस बार बसन्त के आते ही
इस बार बसन्त के आते ही
मैं पेड़ बनूँगा एक बूढ़ा
और पुरवा के कान में फिर
जाकर धीरे से बोलूँगा-
"शरद ने देखो इस बारी
अच्छे से अपना...
मैं समर अवशेष हूँ
'कुरुक्षेत्र' कविता और 'अँधा युग' व् 'ताम्बे के कीड़े' जैसे नाटक जिस बात को अलग-अलग शैलियों और शब्दों में दोहराते हैं, वहीं एक दोस्त...
तमाशा
उन्मादकता की शुरूआत हो जैसे
जैसे खुलते और बन्द दरवाज़ों में
खुद को गले लगाना हो
जैसे कोनों में दबा बैठा भय
आकर तुम्हारे हौसलों का माथा चूम जाए
जैसे...
‘शदायी केह्न्दे ने…’ – रमेश पठानिया की कविताएँ
आधुनिक युग का आदमियत पर जो सबसे बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है वो है इंसान से उसकी सहजता छीन लेना। थोपे हुए व्यवसाए हों या...
स्वयं हेतु
अनुवाद: पुनीत कुसुम
एक
मैं अपनी डायरी में कुछ बेतरतीब शब्द लिखती हूँ
और कहती हूँ उसे बाइबिल
जिसमें 'प्रेम' अन्तिम शब्द है
दो
'यकीन' जैसे शब्दों के नीचे मैं...
कहते हो.. प्यार करते हो.. तो मान लेती हूँ
तुम कहती हो
"कहते हो.. प्यार करते हो.. तो मान लेती हूँ"
मगर, क्यों मान लेती हो?
आख़िर, क्यों मान लेती हो?
पृथ्वी तो नहीं मानती अपने गुरुत्व...
खजूर बेचता हूँ
न सीने पर हैं तमगे
न हाथों में कलम है
न कंठ में है वीणा
न थिरकते कदम हैं
इस शहर को छोड़कर
जिसमें घर है मेरा
उस ग़ैर मुल्क...
पथिक
चलते-चलते रुक जाओगे किसी दिन,
पथिक हो तुम,
थकना तुम्हारे न धर्म में है
ना ही कर्म में,
उस दिन तिमिर जो अस्तित्व को
अपनी परिमिति में घेरने लगेगा,
छटपटाने...
‘कविता’ पर कविताएँ
जब कविताएँ पढ़ते या लिखते हुए कुछ समय बीत जाता है तो कोई भी पाठक या कविता-प्रेमी अनायास ही कभी-कभी कुछ ऐसे सवालों में...
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की प्रेम कविताएँ
अमूमन रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम आते ही जो पंक्तियाँ किसी भी कविता प्रेमी की ज़बान पर आती हैं, वे या तो 'कुरुक्षेत्र' की...
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जूता, मोजा, दस्ताने, स्वेटर और कोट
जूता, मोजा, दस्ताने, स्वेटर और कोट- ये सब चीज़ें कपड़ों की किसी अलमारी से नहीं, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कविता संग्रह 'खूटियों पर टंगे लोग' के पन्नों...