एक दिन
कातर हृदय से,
करुण स्वर से,
और उससे भी अधिक
डब-डब दृगों से,
था कहा मैंने
कि मेरा हाथ पकड़ो
क्योंकि जीवन पन्थ के अब कष्ट
एकाकी नहीं जाते सहे

और तुम भी तो किसी से
यही कहना चाहती थी;
पन्थ एकाकी
तुम्हें भी था अखरता;
एक साथी हाथ
तुमको भी किसी का
चाहिए था,
पर न मेरी तरह तुमने
वचन कातर कहे

ख़ैर, जीवन के
उतार-चढ़ाव हमने
पार कर डाले बहुत-से;
अन्धकार, प्रकाश
आँधी, बाढ़, वर्षा
साथ झेली;
काल के बीहड़ सफ़र में
एक-दूजे को
सहारा और ढाढ़स रहे

लेकिन,
शिथिल चरणे,
अब हमें संकोच क्यों हो
मानने में,
अब शिखर ऐसा
कि हम-तुम
एक-दूजे को नहीं पर्याप्त,
कोई तीसरा ही
हाथ मेरा औ’ तुम्हारा गहे!

Book by Harivanshrai Bachchan:

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हरिवंशराय बच्चन
हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (27 नवम्बर 1907 – 18 जनवरी 2003) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है।

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