बुढ़िया ने गोद में रखा
अपने बुड्ढे का सिर
और मालिश करने लगी
सिर के उस हिस्से में भी
जहाँ से
बरसों पहले विदा ले चुके थे बाल
दोनों को याद आया
कि शैतान बच्चे टकला कहते हैं बुड्ढे को
और मन ही मन टिकोला मारना चाहते हैं
उसके गंजे सर पर
दोनों हँसे
अपने बचे हुए दाँत दिखाते हुए
बुढ़िया ने हँसते हुए टिकाना चाहा
(जितना वह झुक पायी)
झुर्रियों भरा अपना गाल बुड्ढे के माथे पर
बैलगाड़ी के एक बहुत पुराने पहिए ने
याददाश्त सम्भालते हुए गर्व से बताया—
“मैं ही लेकर आया था इनकी बारात!”
देवेश पथ सारिया की कविता 'स्त्री से बात'