अब्दुल्ला पाशा मौजूदा दौर के विख्यात कुर्दी कवियों में से एक हैं। इनका जन्म 1946 में दक्षिणी कुर्दिस्तान में हुआ था। इन्होंने ‘सोवियत संघ’ से शिक्षाशास्त्र में परास्नातक किया और 1984 में भाषाविज्ञान से डॉक्टरेट की उपाधी ग्रहण की। कुछ वर्ष लीबिया के अल फतेह विश्विविद्यालय में भी कार्यरत रहे।

इनकी पहली कविता 1963 में प्रकाशित हुई थी और पहला संग्रह 1967 में आया था। हाल में ही, दो खण्डों में प्रकाशित ‘टुवर्ड्स ट्वाईलाईट’ और ‘माय हॉर्स इज़ आ क्लाउड, माय स्टिरप आ माउंटेन’ इनके संग्रह हैं।

अब्दुल्ला विदेशी भाषाओं की गहरी समझ रखते हैं। पुश्किन और व्हिटमैन की रचनाओं का कुर्दी में अनुवाद कर चुके हैं। 1995 से फिनलैंड में रहते हैं।

निम्न अनुवाद ‘वर्ल्ड लिट्रेचर टुडे’ नामक वेब पत्रिका के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है।

‘To The Critics’ – Abdulla Pashew
अनुवाद: कुशाग्र अद्वैत

तुम मुझसे बार-बार पूछते हो―
किसने अता की
मुझे यह आज़ादी,
कैसे मेरी यह ज़ुबान
अज़ला की एक पत्ती, माँस की एक मजबूर खपची
चीर सकती है
शहंशाह के महल का रेशमी पर्दा,
कैसे यह इतनी बेधड़क
गुज़र सकती है
काँटों की सेजों से,
खरदार तारों से?

तुम मुझसे पूछते हो―
मेरे सर पर
किस तख़्त का,
किस ताज का
हाथ है?
तुम मुझसे पूछते हो―
मैं किस
जेब की पैदाइश हूँ?

ठहरो,
मैं बताता हूँ:
मेरी ग़ुरबत का सन्दूक लबरेज़ है,
मेरी बेघरी एक फ़लकबोस इमारत है,
मेरी बेख़्वाबी का बिस्तर गरम है,
और चारों मौसमों के पार
मेरे अँगूर के बागों का रंज
रस से लबालब है;
कोई कील, कोई काँटा
उनके आर-पार जा नहीं सकता

तुम ही कहो तब―
यह साबित कदमी मेरी महबूबा कैसे ना हो?
मुझको आज़ादी अता कैसे ना हो?

कुशाग्र अद्वैत
कुशाग्र अद्वैत बनारस में रहते हैं, इक्कीस बरस के हैं, कविताएँ लिखते हैं। इतिहास, मिथक और सिनेेमा में विशेष रुचि रखते हैं। अभी बनारस हिन्दू विश्विद्यालय से राजनीति विज्ञान में ऑनर्स कर रहे हैं।