सोया था संयोग उसे
किस लिए जगाने आए हो?
क्या मेरे अधीर यौवन की
प्यास बुझाने आए हो?

रहने दो, रहने दो, फिर से
जाग उठेगा वह अनुराग,
बूँद-बूँद से बुझ न सकेगी
जगी हुई जीवन की आग।

झपकी-सी ले रही
निराशा के पलनों में व्याकुल चाह,
पल-पल विजन डुलाती उस पर
अकुलाए प्राणों की आह।

रहने दो अब उसे न छेड़ो
दया करो मेरे बेपीर!
उसे जगाकर क्यों करते हो
नाहक मेरे प्राण अधीर?!

सुभद्राकुमारी चौहान की कहानी 'जम्बक की डिबिया'

Book by Subhadra Kumari Chauhan:

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सुभद्राकुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1904 - 15 फरवरी 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।

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