वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग
इच्छा है मगर इच्छा से ज़्यादा
और आपत्तिजनक मगर ख़ून में फैलती
रोशनी के धागों-सी आत्मा में जड़ें फेंकती
वह इच्छा है
अलुमुनियम के फूटे कटोरों का कोई सपना ज्यों
उजले भात का
वह इच्छा है जिसे लिख रहे हैं
खेत-मज़दूर, छापामार और कवि एक साथ
वह इच्छा है हमारी
जो सुबह के राग में बज रही है…
पंकज सिंह की कविता 'वह किसान औरत नींद में क्या देखती है'