Tag: स्वप्न / ख़्वाब
इतना मालूम है
अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़
सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मगर उस कूचा-ए-रंग-ओ-बू में
रोज़ की तरह...
कुल्हाड़ी
यहाँ लकड़ी कटती है लगातार
थोड़ा-थोड़ा आदमी भी कटता है
किसी की
उम्र कट जाती है
और पड़ी होती धूल में टुकड़े की तरह
शोर से भरी
इस गली में
कहने...
वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग
वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग
इच्छा है मगर इच्छा से ज़्यादा
और आपत्तिजनक मगर ख़ून में फैलती
रोशनी के धागों-सी आत्मा में जड़ें...
कमाल का स्वप्न, नींद, प्रतीक्षारत
कमाल का स्वप्न
जीवन के विषय में पूछे जाने पर
दृढ़ता से कह सकता हूँ मैं
कमाल का स्वप्न था..
जैसा देखा, हुआ नहीं
जैसा हुआ, देखा नहीं!
नींद
कहानी सुनाकर
दादी...
लैंग्स्टन ह्यूज की कविता ‘हारलम’
Poem: Harlem by Langston Hughes
Translation: Arjita Mital
क्या होता है जब कोई सपना अधूरा रह जाता है?
क्या वह धूप में रखी
किशमिश की तरह मुरझा जाता...
पसीने की गन्ध
कुछ बातें देर तक गूँजती हैं
बिना पहाड़ और दीवार से टकराए
शोर में वे
चुपके-से अपनी जगह बना लेती हैं और
बच जाती हैं हमेशा के लिए
बहुत से...
स्वप्न में पूछा तुमने
'Swapn Mein Poochha Tumne', a poem by Rag Ranjan
स्वप्न में पूछा तुमने
क्या कहोगे मुझसे आख़िरी बार
हो यही बस एक मुलाक़ात
फिर ना मिलना हो यदि...
वास्तु, स्वप्न और प्रेम
'Vastu, Swapn Aur Prem', Hindi Kavita by Rahul Boyal
अपने घर का दरवाज़ा पूरब की ओर खुलता है
मुझे सूरज इसी दरवाज़े पर मिलता है रोज़
जब...
ख़्वाब
'Khwab', a poem by Shahbaz Rizvi
सुब्ह दम ख़्वाब के हिसार में सोया हुआ बच्चा
जब अपने हाथ से तारों के चेहरे को छुपाता है
जब अपनी जेब...
मेरे सपने बहुत नहीं हैं
'Mere Sapne Bahut Nahi Hain', a poem by Girija Kumar Mathur
मेरे सपने बहुत नहीं हैं
छोटी-सी अपनी दुनिया हो,
दो उजले-उजले से कमरे
जगने को, सोने को,
मोती-सी...
आँखों में मरते सपने
'Aankhon Mein Marte Sapne', a poem by Santwana Shrikant
उन लाखों युवतियों के नाम
लिख रही हूँ दो शब्द,
जिनकी देह पर तोड़ देती है
अंधी मर्दानगी अपना...
एक काफ़िर सपना….
जब खिसियाई दोपहर में बदल रही थी
मायूस सुबह,
बासी हो चला था
ताज़ी अखबार,
दीवाल पर सूख चुकी थी
चाय की बेरंग रंगत,
दिन के कैनवास पर-
खींचकर आड़ी-सीधी रेखाएँ
पिघल...