‘Vastu, Swapn Aur Prem’, Hindi Kavita by Rahul Boyal
अपने घर का दरवाज़ा पूरब की ओर खुलता है
मुझे सूरज इसी दरवाज़े पर मिलता है रोज़
जब तुम्हारी प्रतीक्षा में
खड़ा मिलता हूँ मैं यहीं; अपने पड़ोसी को।
यूँ तो शुभ है पूरब में द्वार होना
पर कहते हैं क़र्ज़ में डूबा रहता है आदमी
तुम इसी द्वार से करो गृह-प्रवेश
इतना प्रेम करो कि जीवन कभी उऋण होने न पाये
और वास्तु की सत्यता स्वयं ही सिद्ध हो जाये।
बाघ-बाघिन का प्रेमातुर जोड़ा
बहुत तीव्र दौड़ता हुआ घोड़ा
नीलगाय, नेवला, चिड़िया, गाय का बछड़ा
जाने क्या-क्या देखता हूँ
द्वार खुला हुआ देखता हूँ
घास के मैदान देखते हुए
नदी का पानी पी रहा हूँ
तुम्हारे लिए रक्तपुष्प की खोज में निकलता हूँ
और सफ़ेद साँप द्वारा काट लिया जाता हूँ
ये कैसे स्वप्न हैं कि पुल पर चल रहा हूँ
और पानी में डूब रहा हूँ
इतना प्रेम करो कि कुछ भी अशुभ होने न पाये
और स्वप्नों की वैज्ञानिकता स्वयं ही सिद्ध हो जाये!
यह भी पढ़ें:
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘तुम्हारे साथ रहकर’
अंजना टंडन की कविता ‘प्रेम’
राखी सिंह की कविता ‘अव्यक्त अभिव्यक्ति’
Books by Rahul Boyal: