रुचि की कविता ‘वो कहता है’ | ‘Wo Kehta Hai’, a poem by Ruchi

बन्द पलकों को चूम लेती जब तो
वो कहता, तुम्हारे चुम्बन वज़नी हैं
उसके भार से, आँखें खुलती नहीं सदियों
और मैं डूबा रहता हूँ तुम्हारे स्वप्न में।

सीने पर रख लेती सर जब तो
वो कहता, तुम्हारे मस्तिष्क से,
निकलती है विद्युत चुम्बकीय तरंगें,
जो उदासीन होकर भी, मुझमें उर्जा व संवेग भरती हैं।

हाथों में ले लेती हाथ जब तो
वो कहता, तुम्हारा स्पर्श नम है,
अन्दर तक भिंज जाती है नमी,
और गढ़ लेती हो मुझको तुम, ख़ुद-सा।

पीठ से लगा बैठती है पीठ जो तो
वो कहता, तुम्हारे मेरूदण्ड के तैंतीस खण्डों से,
रिसता है जो प्रेम मेरे लिए, नख से शिख तक,
हो सराबोर मैं प्राप्त करता हूँ अमरत्व।

इन तमाम अद्भुत संयोगों के बावजूद
हो जाते कई उपग्रह, अपने ग्रहों से जुदा,
पर परिक्रमा करना नहीं छूटता उनका,
और प्रचलित है कि सौरमण्डल में करते हैं
परिक्रमा सभी उपग्रह अपने ग्रहों की।

यह भी पढ़ें: सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘तुमसे अलग होकर’

Recommended Book:

Previous articleमाँ का अस्तित्व
Next articleबाज़

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here