वो अन्ततः कसी गयीं उन्हीं कसौटियों पर
जो अनन्त काल से मान्य थीं स्त्रियों के लिए

उनके तमाम गुण दरकिनार कर दिए जाते
एक समय विशेष में वो रह जातीं देह मात्र

वो आईपीएस थी रोबदार, जुर्म थर्राता उसको देख,
अपराधियों और मातहतों से अक्सर सुना दबी ज़ुबान से-
“साली, यही तेवर बिस्तर पर भी दिखाए तो मज़ा आ जाए।”

वो अदाकारा थी बेहतरीन, साक्षात कला की मूरत,
प्रशंसकों ने सर आँखों बिठाया, अनसुना करा था उसने-
“न जाने कितनों के बिस्तर गर्म किए, नाम तो होना ही था।”

वो लेक्चरार थी तजुर्बेदार, तेज़ तर्रार, समझदार,
छात्रों की चहेती, हँसती-खिलखिलाती, सब मैनेज कर लेती…
“विशेष कृपा है मैनेजिंग कमेटी की, बिस्तर तक पहुँच है मैडम की।”

ये सारी सफलता मापी गई
वक्ष, नितम्ब, योनि के पैमानों पर…
योग्यता संघर्षरत है अस्तित्व के लिए आज भी।

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