‘Zinda Hindustan Hai JNU’, a poem by Gaurav Bharti

जिस हिन्दुस्तान की शान में
अल्लामा इक़बाल ने कहा था-
‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’

उसी हिन्दुस्तान की ज़मीं पर
बोलता, लड़ता
आततायी सत्ता की आँखों में आँखें डाल
सवाल पूछता
ज़िन्दा हिन्दुस्तान है जेएनयू

तुम बरसा लो लाठियाँ
लगवा दो टैंक
भले दाग दो गोलियाँ
हम फिर उठ खड़े होंगे
हर बार की तरह
अपने पैरों पर
मुट्ठी हवा में ताने हुए
निकल पड़ेंगे सड़कों पर

मुसलसल तुम्हारी नींदों में चुभेंगे
खड़े हो जाएँगे हर बार तुम्हारे सामने आईना बनकर

तुम्हारी हर काली करतूतों पर उँगली उठाएँगे
घूम-घूमकर बस्तियों में
तंग गलियों में
खोल आएँगे
आँखों पर बंधी पट्टियाँ

इतना आसान नहीं होगा साहब तुम्हारे लिए
बोलते हुए इस हिन्दुस्तान को ख़ामोश करना

यहाँ की आबोहवा
तुम्हारे लीपे-पुते चेहरों पर
थप्पड़ की मानिंद पड़ेगी
लाल इमारतों की हर इक ईंट
तुम पर ठनकों की तरह गिरेंगी

हमारे हम-साथी निरीह जानवर
जंगलों से निकलकर खदेड़ आएँगे तुम्हें तुम्हारे बिल तक

हम सिखाएँगे
बार-बार सिखाएँगे तुम्हें
लोकतंत्र का व्याकरण
पढ़ाएँगे तुम्हें
संविधान का मुकम्मल पाठ

हम खींच कर ले जाएँगे तुम्हें उस कठघरे तक
जहाँ पूरी क़ौम तुमसे सवाल पूछेगी

वह पूछेगी तुम्हारे जुमलों का मतलब
वह माँगेगी तुम से तुम्हारे हवाई यात्राओं का हिसाब

हम लिखेंगे हिन्दुस्तान का मुस्तक़बिल
आसान नहीं होगा साहब
तुम्हारे लिए
बोलते हुए इस हिन्दुस्तान को ख़ामोश करना…

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गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली | इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408

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