‘Abhisaar’, a poem by Akhileshwar Pandey
काजल की पतली रेखा घटाटोप बारिश चाहती है
उसकी पनीली आँखों में तैर रहे सुनहरे सपने
मैं बूँद-बूँद पी रहा हूँ
उसके होंठों की प्यास
सुराहीदार गरदन को चूमते ही
बन्द हो गयी आँखें
प्यार कहने में नहीं
देखने में है
आँखों की बयानी
होठों की ज़ुबानी से ज़्यादा असरदार है
उसकी पीठ पर बनी गहरी नदी में तैर रही हैं मेरी उँगलियाँ
यह शरारत नहीं
चाहत का आमन्त्रण है
सिसकियों से सिहरकर
बरस रहे हैं बादल
उर्वर वन में…
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