मेरी भाषा अलग है
तुम्हारी भाषा अलग है,
जम्मू से आती हुई
गद्दी जनजातियों की चीख़ें
लद्दाख की मूक बर्फ़ से
ढकी पहाड़ियों को चीरती
आदिवासियों की पीर
दोनों ने ही महसूस की है,
असम में नागरिकता
न मिलने का दुःख
दोनों भाषाओं में
एक जैसा ही होता है।

राजस्थान के एकाकी मरुस्थल
पीठ टिकाए हैं जैसे अरावली पर
ठीक वैसे ही मैं
तुम्हारे कंधे पर सिर टिकाए
भूल जाना चाहती हूँ
बंजर धरती का दर्द।

कच्छ के सुर्ख़ सफ़ेद रेगिस्तान की पीड़ा
मुझसे होकर तुम तक
भी तो जाती है,
जैसे उल्का पिंड से जन्मा है
लोनार लेक,
वैसे ही जन्मना चाहती हूँ मानवता को
तुम्हारे आलिंगन से,
सुंदरवन के मैंग्रोव्स जैसे
जन्मते हैं सजीव प्रजक
वैसे ही नवजात को
जन्म देना चाहती हूँ
जो दुनिया के दलदल में भी
बचा पाए अपना अस्तित्व।

पश्चिमी तट सुंदरता ओढ़े
भूस्खलन की अनिश्चितता में,
नीलकुरिंजी की प्रतीक्षा करते हुए,
देखो मुन्नार के पर्वत
जितनी गहरी ताक लगाए हैं,
वैसे ही तुम मेरी
प्रतीक्षा कर रहे होंगे,
तुम्हारी कामनाओं को लेकर
मैं इच्छामती नदी की तरह
बहती हुई आऊँगी
अबकी बार जो मिलोगे
तुम अरब सागर का
सारा नीलापन मेरे माथे पर मलना
और मैं सोख लूँगी
तुम्हारी उदासियों का खारापन।

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