‘Aksar Tum Kehti Thi’, a poem by Gaurow Gupta

अक्सर तुम कहती थीं-
“अच्छा होता हम मिले ना होते!”

मैं कहता था-
“मिलकर… इतना बुरा भी तो नहीं लगा!”

अक्सर तुम कहती थीं
कि मैं बहुत बुरा हूँ
और उसी वक़्त मेरी छाती पर
तुम्हारा सिर रख देना
सारा व्याकरण गड्डमड्ड कर देता था

सारे निर्रथक शब्द
प्रेम में सार्थक हो जाया करते हैं
और सारे सार्थक शब्द, निर्रथक।
यह तुमसे प्रेम करके मैंने जाना है…

बड़े शहरों की भीड़ में
एकान्त खोजा जा सकता है,
सड़कें नापी जा सकती हैं
सख़्त चेहरे पर उगे दुःख के गड्ढे
तत्क्षण भरे जा सकते हैं
यह तुम्हारे साथ रहकर मैंने जाना है…

मैं याद कर सकता था
बिना हिचकिचाहट के
अपने छोटे शहर के किस्से,
गिना सकता था अपनी कमी
उँगलियों पर,
इन सब के बीच…
“ख़ुद पर भरोसा रखो” से लिपटा तुम्हारा चुम्बन
मुझे,
तुम्हारे प्रेम मे मिला सबसे क़ीमती उपहार था!

अब हम दोनों लम्बे अरसे से
अपने-अपने कोनों में सरक चुके हैं
फिर भी,
बिना बताये एक-दूसरे की ओर
हमारा झाँक लेना
ठिठुराती जाड़े की
अभी-अभी बुझी राख में
आग खोजने जैसा है…

मुझे यक़ीन है कम से कम धरती रहने तक
यह प्रेम साँस लेता रहेगा
सबसे छुपकर
मन के गहरे अँधेरे कमरे में…

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चित्र श्रेय: गौरव

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गौरव गुप्ता
हिन्दी युवा कवि. सम्पर्क- [email protected]