ले चलो मुझे इस लोक से दूर कहीं
जहाँ निर्धन धनवानों को चुनते नहीं
जहाँ मूर्ख और पंगु नहीं बनते बुद्धिमान
जहाँ निर्बल स्त्रियों पर वीरता नहीं दिखाते शक्तिमान

ले चलो मुझे ऐसे लोक में
जहाँ बूढ़े अपनी माया फैलाए नहीं करते राजनीति
जहाँ ज़रूरी नहीं युवाओं के लिए
पार करना मगरमच्छों से भरी कोई नदी

ले चलो मुझे इस लोक से उस लोक में
जहाँ चल सकूँ अपने बनाए रास्ते के आलोक में!

ऋतुराज की कविता 'माँ का दुःख'

Book by Rituraj:

ऋतुराज
कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान में भरतपुर जनपद में सन 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अंग्रेजी-अध्ययन किया। ऋतुराज के अब तक के प्रकाशित काव्य संग्रहों में 'पुल पानी मे', 'एक मरणधर्मा और अन्य', 'सूरत निरत' तथा 'लीला अरविंद' प्रमुख है।