Anuvaad Aur Bhasha, a poem by Kushagra Adwaita
ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती,
ऊर्जा का केवल अनुवाद सम्भव है
मैं दूसरी भाषा की ऊर्जा का
अपनी भाषा में
अनुवाद करता हूँ
मैं दूसरी भाषा से
अपनी,
बेहद अपनी
भाषा में
कविता का
अनुवाद करता हूँ
उस भाषा के सकुचाए से
प्रणय निवेदन की नाज़ुकी का,
उस भाषा की ममता का,
उस भाषा की कोमलता का,
उस भाषा के मुहावरों का,
उस भाषा की गालियों का
बराबर मान रखते हुए
अपनी भाषा में
अनुवाद करता हूँ
कुछ भाषाएँ हैं
जो अपनी कुलीनता के
दम्भ से भरी हुई हैं
जिनके कवि सत्ता के
चाटुकार हो गए थे
इन भाषाओं से अनुवाद
अमूमन सरल होता है
मेरी अपनी,
भाषा का दम्भ
इन अनुवादों में
मेरा सहयोगी होता है
मैं पूरी कोशिश करता हूँ
दूसरी भाषाओं से पीड़ाओं को
अपनी भाषा में
अनुदित करने की
लेकिन, हर बार चूक जाता हूँ
कहीं न कहीं, कुछ न कुछ
छूट जाता है
मेरी भाषा दलिद्र नहीं है,
मेरी भाषा अयोग्य नहीं है,
मेरी भाषा के अंतरिक्ष में
शब्दों के अनगिन नक्षत्र हैं
मेरी भाषा ने बरसों
भोगी है दासता,
मेरी भाषा ने झेले हैं
अपरिमेय दुःख,
मेरी भाषा को
कवच मुहैया नहीं था,
मेरी भाषा की देह भी
घाँवों से सनी हैं
लेकिन,
कुछ ऐसी भी भाषाएँ हैं
जिनके घाँव सबसे देर में भरे
और बहुत दिनों तक उन पर
भिनभिनाते रहे कीड़े
कुछ ऐसी भी भाषाएँ हैं
जिनमें निःसन्देह अधिक बहा है आँसू,
जिन्होंने अधिक सही है क्रूरता,
जिनको लिखने पड़े सबसे अश्लील चुटकुले
जिनके कवि अँधेरे के इतने अभ्यस्त हो गए थे
कि उन भाषाओं की सबसे महीन कविताएँ
जुगनुओं की टिमटिमाहट में लिखी गईं
मैं पूरी कोशिश करने के बावजूद
उन भाषाओं से पीड़ाओं को
अपनी भाषा में
अनुदित करने में
अक्षम हूँ…
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